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1 फिर उस ने मेरे कानों में ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा, नगर के अधिकारियों को अपने अपने हाथ में नाश करने का हथियार लिए हुए निकट लाओ।
2 इस पर छेपुरूष, उत्तर की ओर ऊपरी फाटक के मार्ग से अपने अपने हाथ में घात करने का हथियार लिए हुए आए; और उनके बीच सन का वस्त्रा पहिने, कमर में लिखने की दवात बान्धे हुए एक और पुरूष था; और वे सब भवन के भीतर जाकर पीतल की वेदी के पास खड़े हुए।
3 और इस्राएल के परमेश्वर का तेज करूबों पर से, जिनके ऊपर वह रहा करता था, भवन की डेवढ़ी पर उठ आया था; और उस ने उस सन के वस्त्रा पहिने हुए पुरूष को जो कमर में दवात बान्धे हुए था, पुकारा।
4 और यहोवा ने उस से कहा, इस यरूशलेम नगर के भीतर इधर उधर जाकर जितने मनुष्य उन सब घृणित कामों के कारण जो उस में किए जाते हैं, सांसें भरते और दु:ख के मारे चिल्लाते हैं, उनके माथों पर चिन्ह कर दे।
5 तब उस ने मेरे सुनते हुए दूसरों से कहा, नगर में उनके पीछे पीछे चलकर मारते जाओ; किसी पर दया न करना और न कोमलता से काम करना।
6 बूढ़े, युवा, कुंवारी, बालबच्चे, स्त्रियां, सब को मारकर नाश करो, परन्तु जिस किसी मनुष्य के माथे पर वह चिन्ह हो, उसके निकट न जाना। और मेरे पवित्रास्थान ही से आरम्भ करो। और उन्हों ने उन पुरनियों से आरम्भ किया जो भवन के साम्हने थे।
7 फिर उस ने उन से कहा, भवन को अशुठ्ठ करो, और आंगनों को लोथों से भर दो। चलो, बाहर निकलो। तब वे निकलकर नगर में मारने लगे।
8 जब वे मार रहे थे, और मैं अकेला रह गया, तब मैं मुंह के बल गिरा और चिल्लाकर कहा, हाय प्रभु यहोवा ! क्या तू अपनी जलजलाहट यरूशलेम पर भड़काकर इस्राएल के सब बचे हुओं को भी नाश करेगा?
9 तब उस ने मुझ से कहा, इस्राएल और यहूदा के घरानों का अधर्म अत्यन्त ही अधिक है, यहां तक कि देश हत्या से और नगर अन्याय से भर गया है; क्योंकि वे कहते हें कि यहोवा ने पृथ्वी को त्याग दिया और यहोवा कुछ नहीं देखता।
10 इसलिये उन पर दया न होगी, न मैं कोमलता करूंगा, वरन उनकी चाल उन्हीं के सिर लौटा दूंगा।
11 तब मैं ने क्या देखा, कि जो पुरूष सन का वस्त्रा पहिने हुए और कमर में दवात बान्धे था, उस ने यह कहकर समाचार दिया, जैसे तू ने आज्ञा दी, मैं ने वैसे ही किया है।
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